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गुरुवार, 25 अगस्त 2011

चीन की 'ना'पाक चाल


चीन की नापाक’ चाल
 
दुनिया को अपनी शक्ति का एहसास कराने के लिए चीन समय समय पर कोई ना कोई धमाका करता रहता रहता है... और एशिया महाद्वीप में अपना दबदबा कायम रखनो के लिए चीन ने तमाम सामरिक हथकंडे अपना लिए हैं... वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए यह लग सकता है कि आतंकवाद और पाकिस्तान भारत के लिए खतरे की घंटी हैं लेकिन आने वाले समय में चीन भारत के लिए एक बड़ी समस्या बन सकता है... चीन न केवल भारत से आर्थिक रूप से काफी मजबूत है बल्कि सामरिक रूप से भी काफी सबल है... हिंद महासागर में चीन की बढ़ती शक्ति इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है... चीन ने भारत को घेरने के लिए मोंतियों की मला की नीती  अपनायी है... जिसके तहत वह भारत के सभी पड़ोसी देशों से सामरिक संबंध कायम कर रहा है....अपनी इस योजना के लिए चीन ने इसकी शुरूआत भारत क पड़ोसी देश पाकिस्तान शुरू की ... चीन ने पाकिस्तान की नौसेना को मजबूत करने के लिए हर तरह की मदद की....इसी तरह से  बांग्लादेश में नौसैनिक अड्डे का निर्माण किया...इतना ही नहीं चीन ने श्रीलंका में भी बंदरगाह निर्माण में रूचि दिखाई है....इस तरह से चीन अपनी मोतियों की माला की नीति को पूरा कर रहा है... चीन की इस चाल को भारत भी अच्छी तरह से समझ रह है.... इसलिए भारत ने भी अपनी सैन्य क्षमता को उन्नत करने के लिए रूस के साथ अमेरिका और पश्चिमी देशों से सैन्य समझौते किए हैं... लेकिन इन सबके इतर चीन भारत के खिलाफ अलग ही रणनीति बना रहा है... चीन ने भारत को घेरने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर भारत की पश्चिमी सीमा पर जैसलमेर से केवल 25-30 किलोमीटर दूर सैन्य अभ्यास शुरू किया है...जिससे अब राजस्थान के जैसलमेर से गुजरात के कच्छ के रण तक फैली 1100 किलोमीटर की पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान और चीन से खतरा बढ़ता जा रहा है.... जैसलमेर के रामगढ़ के तनोट क्षेत्र से महज 25 किलोमीटर दूर सीमा पार पाकिस्तान और चीन की सेनाएं युद्धाभ्यास कर रही हैं.... लेकिन छिपा एजेंडा यह है कि सीमा के इस पार भारत के तेल और गैस का बीस फीसदी भंडार मौजूद है और कई विदेशी और देशी कंपनियां इस इलाके में तेल और गैस की खोज कर रही हैं पाकिस्तान सेना की निगाहें इसी भंडार पर हैं अब चीन की भी नीयत में खोट आ गई है ..... राजस्थान में जैसलमेर-बीकानेर जिलों से लगती सीमा के पास भारी तादाद में चीनी सेना और पाक रेंजर्स रेगिस्तानी इलाकों में युद्ध जीतने के गुर सीख रहे हैं.... यह अभ्यासस पाकिस्तन के रहिमियार खान इलाके के सेम नाला में चलाया गया.... इस जगह की सीमा जैसलमेर के तनोट-किशनगढ़ इलाके से लगती है.... अभ्यास में भाग लेने के लिए चीन की पूरी ब्रिगेड मौजूद है... इसमें चीन की पीपुल्सस लिबरेशन आर्मी की 101 इंजीनियरिंग रेजीमेंट और पाकिस्तान रेंजर्स के जवान भाग ले रहे हैं...

गौरतलब है कि भारत और पाकिस्तान के बीच पहले हुए सीमा करार के मुताबिक नियंत्रण रेखा (लाइन ऑफ कंट्रोल) के 50-75 किलोमीटर के दायरे में अगर किसी भी तरह का संयुक्त युद्ध अभ्यास किया जाएगातो पहले इसकी जानकारी दूसरे मुल्क को देनी होगी... लेकिन चीन और पाकिस्तान दोनों ने भारत को बताने की जरूरत ही नहीं समझी.... हमारी सीमा से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर बेफिक्र होकर पाकिस्तान चीन से जंग जीतने की चाल समझ रहा है.. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर हमारी खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं...जहां एक हफ्ते तक चीन की पिपुल्स लिब्रेशन आर्मी के आला अधिकारी पाकिस्तानी सेना को प्रशिक्षण दे रहे थे.... लेकिन हमारे रडारसैटेलाइट या फिर सेना तक को इस बात की जानकारी नहीं है.... क्या चीन और पाकिस्तान गुप्त तरीके से ये युद्धअभ्यास कर रहे हैं या फिर यह हमारी कमजोरी है कि हम सीमा पार हो रही हलचल को पकड़ने में नाकाम हैं... खतरा सिर्फ यही नहीं है कश्मीर से सटी सीमा को छोड़ अब पाकिस्तान राजस्थान में भारी मात्रा में सेना तैनात कर रहा है.. चीन ने भी पाकिस्तान को भारत से सटी सीमा मजबूत करने में पूरी मदद देने का वादा किया है... खुफिया रिपोर्टों के मुताबिक चीन की ओर से पाकिस्तान को हर तरह की मदद मिल रही है... पाकिस्तान को भारत के पश्चिमी क्षेत्र से सटे इलाकों में ताकत बढ़ाने के लिए टैंक अपग्रेड टेक्नो‍लॉजी और मानवरहित विमान भी मुहैया करा रहा है यानी पाकिस्तान अब इन रेगिस्तानी इलाकों में ड्रोन उड़ाएगाहमारी हर हलचलसीमा पर हो रही हर हलचल की पाकिस्तान को खबर मिल जाएगी... साफ है भारत को अपनी सीमाओं को दुरुस्त करना होगा... अगर हम आनेवाले वक्त में सीमा पर ड्रोन तैनात करने की सोच रहे हैंतो पाकिस्तान भी हमसे पीछे नहीं रहेगा...
पाकिस्तान चीन की बेहतरीन तकनीक से लैस हो रहा है... न तो उसे अंतर्राष्टीय कानूनों की परवाह है और न ही किसी समझौते कीइसलिए जरूरी है कि अब भारत भी अपने रुख में सख्ती लाए और इन हरकतों पर लगाम लगाए... पाकिस्तान और चीन उर्जाप्रौद्योगिकी और ढाँचागत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाकर अपने गहरे सामरिक संबंधों को और मजबूत करने पर सहमत हुए हैं इसके साथ ही दोनों ने शुक्रवार को यहाँ 10 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के सहमति ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए...
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी और चीनी प्रधानमंत्री वेन जियाबाओ के बीच बातचीत के बाद आपसी रिश्तों को और मजबूती प्रदान करने पर सहमति बनी। पाकिस्तान के तीन दिन के दौरे पर यहाँ पहुँचे वेन ने कहा कि चीन जटिल और अस्थिर अंतरराष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय परिस्थितियों’ को देखते हुए पाकिस्तान के साथ अपनी रणनीतिक साझीदारी गहरी करना चाहता है। चीन ने पाकिस्तान की संप्रभुतासुरक्षा और राजनीतिक एकता के लिए अपना पूरा समर्थन देने का वादा किया और साथ ही पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम को प्रोत्साहित करने एवं रक्षा और आर्थिक सहयोग बढ़ाने का भी वादा किया...

दोनों देशों ने आर्थिकउर्जाबैंकिंगसुरक्षा और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में सहयोग के लिए 10 अरब डॉलर से अधिक मूल्य के सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए। पाकिस्तान के विदेश मंत्री सलमान बशीर ने कहा कि चीनी प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान कुल 24 अरब डॉलर मूल्य के समझौतों पर हस्ताक्षर किए जाएँगे। उन्होंने कहा कि चीन ने पाकिस्तान की उर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए उसे सहयोग करने की पेशकश की है। चीन इस साल आई बाढ़ से ध्वस्त हुए ढाँचे के पुनर्निमाण में पाकिस्तान को करीब 20 करोड़ डॉलर का अनुदान उपलब्ध कराएगा। इसके अलावाचीन इस्लामाबाद और कराची में इंडस्ट्रियल एंड कामर्शियल बैंक ऑफ चाइना की दो शाखाएँ भी खोलेगा।

इस विषय पर रक्षा मंत्री ए के एंटोनी ने कहा कि भारत चीन और पाकिस्तान के बढ़ते रक्षा संबंधों को गहरी चिंता के साथ देखता है... लेकिन इन हमें चुनौतियों का सामना करने के लिए अपनी क्षमताओं में वृद्धि करनी होगी.... यह हमारे लिए गहरी चिंता का मामला है. मुख्य बात है कि हमें अपनी क्षमता में वृद्धि करनी होगी.... केवल यही जवाब हो सकता है.... एंटनी की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब चीन पाकिस्तान को 50 नये जेएफ 17 थंडर जेट विमान मुहैया कराने जा रहा है.... इस यह एक मल्टीरोल फाइटर जेट है इस विमान के सह उत्पादन के लिए दोनों देशों के बीच समझौता हुआ है..

एक तरफ जहां चीन बड़ी तेजी से अपनी अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा रह है लेकिन भारत भी इस मामले में पीछे नहीं है... भारत ने सेना के तीनों अंगो को मजबूत करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है... भारत ने वायुसेना की ताकत बढ़ान के लिए 126 लड़ाकू विमानों का टेंडर निकाला है... जिसमें दुनिया भर की बड़ी कंपनियों ने भारत को विमान देने की पेशकश की... हालांकि रूस और अमेरिका इस दौड़ से बाहर हो गए हैं... क्योंकी उनके विमान भारतीय मानकों पर खरे नहीं उतरे हैं.. अब इस दौड़ में युरोप की दो कंपनिया युरोफाइटर औऱ फ्रांस की राफेल ही बची हुई हैं...इसके साथ ही भारत ने अपने पहले स्वदेशी युद्धक विमान तेजस का सफल परीक्षण किया..भारत की समुद्री सीमाएं सुरक्षित रहें इस लिए भारत ने रूस के साथ मिलकर क्रिवाक श्रेणी के नौसैनिक विमान तैयार करने की योजना बनाई है... इस परियोजना के तहत रूस को युद्धपोतों की आपूर्ति भारत को 2011 से 2012 के बीच में करनी है। प्रत्येक युद्धपोत पर जहाजरोधी सुपर सोनिक आठ ब्रह्मोस क्रूज मिसाइलें लगानी हैं। क्रिवाक श्रेणी के युद्धपोत का वजन चार हजार मीटरिक टन है और यह 30 नॉट की गति से चल सकता है... बड़े जहाजों और पनडुब्बियों को नष्ट करने में सक्षम इस पोत को विशाल समुद्री अभियानों में तैनात किया जा सकता है... क्रिवाक श्रेणी के जहाजों में मारक क्षमता के लिहाज से इसका मुकाबला करने वाला दूसरा कोई युद्धपोत नहीं है..

दुनिया में चीन के बढ़ते हुए दबदबे को देखते हुए भारत के ये सुरक्षा इंतजाम बेहद जरूरी हो गए हैं... लेकिन गौर करने वाली बात ये है कि भारत की ये रक्षा योजनाएं उसे पाकिस्तान से तो सुरक्षा प्रदान करती हैं लेकिन चीन की सैन्य क्षमता के आगे ये योजनाएं कितनी कारगर हैं.... जाहिर है जब हमारी सीमाएं सुरक्षित रहेंगी तभी देश की प्रगति में तरक्की और तेजी आएगी...और इसके लिए ये जरूरी है कि हम सामरिक रूप से मजबूत बने जो कि एक सफल भारत के लिए बेहद जरूरी है ।


चीन और पाक की बढ़ती नजदीकियां
  • भारत को चारो तरफ से घेरने की पूरी तैयारी कर चुका है चीन
  • पाकिस्तान को पूरी सैन्य मदद दे रहा है चीन
  • दोनो देशों के बीच आर्थिकउर्जाबैंकिंगसुरक्षा और प्रौद्योगिकी को लेकर 10 अरब डॉलर का समझौता
  • पाकिस्तान में आई बाढ़ में ध्वस्त हुए ढांचे के लिए 20 करोड़ डॉलर का अनुदान देगा चीन
  • पाकिस्तान में बैंक ऑफ चाइना की दो शाखाएं खोलेगा चीन

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

तरक्की के 64 साल 





भारत की आजादी से पहले पंडित नेहरू ने कहा था कि .. जब सारी दुनिया नींद की गोद में सो रही होगी तब भारत अपनी आजादी का जश्न मना रहा होगा...
और हुआ भी यही.... हालांकि वह रात आजादी के जश्न के साथ बंटवारे का
ज़ख्म भी दे गई... और अगले दिन जब सूरज की किरणें धरती पर उतरीं तो
 भारत देश के ना जाने कितने ही शहीदों और आजादी के खेवनहारों के सपनो का भी सुर्योदय हुआ.... ब्रिटिश हुकूमत से मिली आजादी के बाद भारत एक नए युग का सूत्रपात करने के लिए तैयार था.... भारत की आजादी को लेकर हजारों पन्ने हैं... जो 1857 से लेकर 1947 तक एकाकार हैं...


 ब्रिटेन की साम्रज्यवादी सरकार से छुटकारा पाने के बाद देश के सामने सैकड़ों चुनौतिया थीं.. और भारत भी बड़े ही जोश के साथ इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार था....सबसे बड़ी समस्या थी रियासतों में बटें देश को एक साथ खड़ा करने की.... जिसका काम सरदार पटेल ने बखूबी किया...सारी
रियासतों का एकीकरण हो जाने के बाद भी गोआ का विलय नही हो पाया था....गोआ की मुक्ति के लिये एक लम्बा आन्दोलन चला... अन्ततः19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना ने यहाँ आक्रमण कर इस क्षेत्र को पुर्तगाली आधिपत्य से मुक्त करवाया और गोआ को भारत में शामिल कर लिया गया...रियासतों के एकीकरण के बाद भी देश में तमाम समस्यांए मुंह बाए
खड़ी थीं... खाद्यान की समस्या से मुक्ति दिलाने के लिए भारत के प्रधानमंत्री
लालबहादुर शास्त्री जी के नेतृत्व में हरित क्रांति की शुरूआत की गई....60 के दशक में भारत भंयकर सूखा पड़ा जिसके कारण देश में खाद्यान की समस्या
उत्पन्न हो  गई...लेकिन भारत ने इस समस्या से निपटने के लिए मेक्सिको से उन्नत श्रेणी के 1800 टन गेहूं के बीज आयात किए.....जिसके बाद भारत ने रिकार्ड मात्रा में गेहूं का उत्पादन किया....
अपनी शैशवास्था से तरुण हो रहे भारत को धीरे धीरे अपनी शक्ति का एहसास होने लगा.... और अपनी शक्ति को दोगुना करने के लिए 1974 में पहला
परमाणु परीक्षण किया....जिससे सारी दुनिया में तहलका मच गया... भारत ने सन् १८ मई, १९७४ में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया.... उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया...

अपनी शैशवास्था से तरुण हो रहे भारत को धीरे धीरे अपनी शक्ति का एहसास होने लगा.... और अपनी शक्ति को दोगुना करने के लिए 1974 में पहला
परमाणु परीक्षण किया....जिससे सारी दुनिया में तहलका मच गया... भारत ने सन् १८ मई, १९७४ में पोखरण में पहला परमाणु परीक्षण किया.... उस समय भारत सरकार ने घोषणा की थी कि भारत का परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण कार्यो के लिये होगा और यह परीक्षण भारत को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिये किया गया...परमाणु कार्यक्रम के साथ ही देश में सूचना एवं प्रौद्योगिकी तथा रक्षा क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ सकें... इसके भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रमसारा भाई ने कई महत्वपूर्ण कार्य किए..इसके लिए साराभाई  ने कृत्रिम उपग्रह  प्रक्षेपण वाहन की की आधारभूत संरचना एवं तकनीक का निर्माण प्रारम्भ कर दिया.... और इसके परीक्षण के  केरल की राजधानी   त्रिवेंद्रम के पास मछुआरों के एक गांव थुंबा से 21 नवंबर 1963 पहला राकेट प्रक्षेपित किया... इसकी सफलता के बाद थुंबा में अंतरिक्ष विज्ञान एवं तकनीकी केंद्र की स्थापना की गई.... इसके बाद भारत ने पीछे
मुड़ कर नहीं देखा और 19 अप्रैल 1975 को अपने पहले  उपग्रह आर्यभट्ट को  अंतरिक्ष में सफलता पूर्वक  प्रक्षेपित कर दिया.. और आज यह सफलता बढ़ कर चंद्रयान तक पहुंच गई है....

प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए भारत ने आज हर क्षेत्र में तरक्की की है...और ये
दुनिया में भारत की बढ़ती हुई साख का आलम है कि आज भारत जी-8 देशों के समूह का प्रमुख सलाहकार है....हमारी आधी से अधिक आबादी युवा है... और हमारे देश के युवा दुनिया को पछाड़ने के लिए बेताब हैं... युरोपीय देशों और ब्रिटेन की कंपनियों की पहली पसंद भारतीय इंजीनियर्स हैं...भारत
 की
रक्षा  संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए अमेरिका और युरोपीय देशों में
होड़ मची हुई है....बहुत अधिक समय पहले की बात नहीं है जब भारत दुनिया से
मदद की गुहार करता था... लेकिन आज समय बदल चुका है... आज भारत के हाथ दुनिया के हर कोने में मदद पहुंचा रहे हैं... चाहे वह युद्ध के बाद बर्बाद हो
चुका अफगानिस्तान हो .... सुनामी की चपेट में आया जापान हो...या फि
अफ्रीकी देश हों....बात केवल आर्थिक मदद की ही नहीं है... समुद्री लुटेरों से
त्रस्त हो चुके देश दुनिया के जहाज भारतीय मदद के आसरे बैठे हैं.... और
भारत ने भी इस समस्या से निजात दिलाने की पूरी कोशिश की है... हाल के
दिनों में भारतीय नौसेना ने सोमालियाई जलदस्युओं से बहुत से बंधक और जहजों को मुक्त कराया है...  

भारत की आजादी को और भारत की संप्रभुता को बचाए रखने में भारतीय सेना का अतुल्य योगदान है... भारतीय सेना ने देश की अस्मिता को बचाने के
लिए हर बार जान की बाजी लगा दी...   भारत की आजादी के एक वर्ष बाद ही भारत से अलग होकर बने देश पाकिस्तान ने 1948 में देश पर हमला कर दिया... भारतीय सेना ने भी इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया और दुश्मन सेना को उल्टे
पैर भागने  पर मजबूर कर दिया.... 1965 में पाकिस्तान ने फिर वही गलती
दुहरायी... और इस बार उसकी हालत पहले से  अधिक खराब हो गई... भारतीय सेना ने लाहौर तक घुस कर पाकिस्तानियों को खदेड़ दिया... और 1971 में हुए भारत पाक युद्ध में भी पाकिस्तान को शर्मसार होना पड़ा.. और उसके
 95000 सैनिकों ने जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने
आत्मसमर्पण कर दिया.... इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकश्त तो मिली ही साथ  ही साथ उसके हाथ से पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) भी चला गया....
1999 में हुए कारनिल युद्ध में भी भारतीय सेना ने पाकिस्तान को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया .... अपने अदम्य साहस शौर्य और कर्तव्यनिष्ठा के
कारण  ही  भारतीय सेना आज भारतीय जनमानस की श्रद्धा का पात्र बन चुकी है...

 सुखे दुखे समेकृत्वा   की  भावना से जीने वाले भारतीय जनमानस ने 1947 से लेकर 2011 तक  कई उतार चढ़ाव देखे हैं... देश पर कोई विपत्ति आई हो या देश ने विकास के नए आयाम गढ़े हो हर परिस्थिति मे देश का हर नागरिक
 एक साथ खड़ा दिखा...फिल्म रंग दे बसंती में एक संवाद है ..
"कोई भी देश परफेक्ट नही होता उसे परफेक्ट बनाना पड़ता है...... असल में
यह केवल एक संवाद नहीं है... यह संवाद बताता है कि हमने  जो आजादी पाई उस आजादी के मायने क्या हैं... इस आजादी की कीमत क्या है...
आज देश में तमाम समस्याएं हैं... और इन समस्याओं का हल भी हमें ही
खोजना है... गरीबी से लेकर भ्रष्टाचार तक और आतंकवाद से लेकर भाषावाद और प्रांतवाद तक इन सारी समस्याओं को हमें ही सुलझाना है..और इस देश को परफेक्ट बनाना है... आईए एस 15 अगस्त हम सब मिल कर यह शपथ लें  कि हम अपने देश के प्रति पूर्ण रूप से इमानदार रहेंगे...और मित्रों यदि हम इस शपथ का पूरी ईमानदारी के साथ पालन करते हैं तो आने वाले वर्षों में
हम स्वयं ही बदलाव की बयार को महसूस करेंगें...प्रगति के पथ पर बढ़ते हुए
भारत को एक बार फिर से विश्व गुरु का स्थान दिला देंगें....
जय हिंद जय भारत

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक नज़र : कुछ बड़े घोटालो पर


आइये एक नज़र डालते हैं आज़ादी के बाद  अब तक हुए कुछ बड़े घोटालो पर

जीप खरीद घोटाला (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपये का था.... लेकिन केवल 155 जीप ही मिली घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई.... 1955 में केस बंद कर दिया गया.. क्योंकि जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।

साइकिल इंपोर्ट (1951): तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।

मुंध्रा मैस (१९५८) : हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के 1.2 करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।

तेजा लोन : १९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।

पटनायक मामला : १९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।

मारुति घोटाला : मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।

कुओ(्यह्वश) ऑयल डील : १९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।

अंतुले ट्रस्ट : १९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।

एचडीडब्लू कमिशन्स (१९८७) : जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।

बोफोर्स घोटाला : १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय 155 मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।

सिक्योरिटी स्कैम : १९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

इंडियन बैंक : १९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।

चारा घोटाला : १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।

दूरसंचार घोटाला-१२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - १९९६
सजा - एक को, वह भी उच्च न्यायालय में अपील के कारण लंबित
वसूली - ५.३६ करोड़ रुपए
(तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम द्वारा किए गए इस घोटाले में छापे के दौरान उनके पास से ५.३६ करोड़ रुपए नगद मिले थे, जो जब्त हैं। पर गाजियाबाद में घर (१.२ करोड़ रु.), आभूषण (लगभग १० करोड़ रुपए) बैंकों में जमा (५ लाख रु.) शिमला और मण्डी में घर सहित सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा। सूत्रों के अनुसार सुखराम के पास उनके ज्ञात स्रोतों से ६०० गुना अधिक सम्पत्ति मिली थी।)

यूरिया घोटाला- १३३ करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २६ मई, १९९६
सजा - अब तक किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(प्रधानमंत्री नरसिंहराव के करीबी नेशनल फर्टीलाइजर के प्रबंध निदेशक सी.एस.रामाकृष्णन ने यूरिया आयात के लिए पैसे दिए, जो कभी नहीं आया।)
सी.आर.बी- १०३० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २० मई, १९९७
सजा - किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(चैन रूप भंसाली (सीआरबी) ने १ लाख निवेशकों का लगभग १ हजार ३० करोड़ रु. डुबाया और अब वह न्यायालय में अपील कर स्वयं अपनी पुर्नस्थापना के लिए सरकार से ही पैकेज मांग रहा है।)
केपी- ३२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २००१ में ३ मामले
सजा - अब तक नहीं
वसूली - शून्य

तहलका : इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डील भी इसमें से एक है।

स्टॉक मार्केट : स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।

स्टांप पेपर स्कैम : यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।

सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।

मनी लांडरिंग : २००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।
2010--- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला--  दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने चुनिंदा टेलीकाम कंपनियों को फायदा पहुचाने के लिए सस्ते दाम पर
स्पेक्ट्रम को बेच दिया... मामला ज्यादा बढ़ जाने पर इस्तीफा दिया..और बाद में जेल गए

CAVS रंगमंच: भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान 

CAVS रंगमंच: भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान

भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान 



वर्तमान समय में  देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है.....  इस  सवाल पर बहुत से  लोगों की अलग अलग राय हो सकती है.....पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं. इस दृष्टि यदि  देखा जाये तो भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है. यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने ना चाहते हुये भी शासन-प्रणाली का और जन-जीवन का एक अनिवार्य अंग मान लिया है.और  हालात ये हैं कि लोग इसे समस्या मानते ही नहीं. रिश्वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक प्राथमिक  नियम बन  गया है. अब लोग रिश्वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो  लोग इस बात का विरोध करतें हैं, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी मान लेते हैं.  ऐसा लगता है कि  समाज से धीरे  धीरे  नैतिकता और आदर्श का बोध समाप्त होता जा रहा है.... सबसे अधिक संकट की बात यह  है कि भ्रष्टाचार ना तो आम लोगों की चर्चा का विषय और ना ही किसी राजनैतिक दल का प्रमुख मुद्दा है.... दुख की बात तो यह है कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनेता और कोरोबारी भ्रष्टाचार  के खिलाफ आंदोलन की बात कर रहें हैं.....देश की इस हालत के लिए ये भ्रष्टाचारी राजनेता जिम्मेदार हैं.... असल में ये राजनेता भ्रष्टाचार का पर्यायवाची  बन चुके है.... भ्रष्टाचार रूपी घुन देश को किस तरह से बर्बाद कर रहा है...उसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे ये राजनेता ही हैं..... पूरा देश जानता है कि इन राजनेताओं को कितना वेतन भत्ता और तमाम तरह की सुविधाएं...मिलती हैं..लेकिन एक बार जनता के द्वारा चुने जाने के बाद  किस तरह से इनके महल खड़े होने लगते हैं....करोड़ों की संपत्ति..... लग्जरी कार और दुनिया भर की सरकारी सहूलियतें.... लेकिन जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है,  उससे वह पूछ भी  नहीं सकते कि  उनके पास इतना धन आया कहाँ से......सब चलता है कि तरह अब लोगों ने इस अपनी नियती मान लिया है......अपने टैक्स का दूरूपयोग होता देख कर भी लोग इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते....बल्कि इसे कन्नी काट कर निकल जाना ही बेहतर समझते हैं....लोग यह भी नहीं समझते कि उनके द्वारा दिया हुआ पैसा देश के विकास के लिए है ना कि इन राजनेताओं के बैंक बैलेंस को भारी करने के लिए....

 ये भ्रष्टाचार केवल नेताओओं तक ही ही सीमित नहीं है.... एक तरह ये नेता जहां करोड़ों  की हेरा फेरी करते हैं वहीं ..... दूसरी तरफ सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार एक (अ)वैधानिक प्रक्रिया का अंग बन चुका है.... सरकारी विभाग में बैठे कर्मचारी बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते.... राशन कार्ड बनवाने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक.... हर काम के लिए रिश्वत..आपका फाइल आगे बढ़ती रहे इसलिए सरकारी विभाग के हर देवता को चढ़ावा देने पड़ता है..... जमीन की रजिस्ट्री करवानी हो या आय प्रमाम पत्र  बनवाना हो बिना रिश्वत दिए आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं... और ये रिश्वत इस लिए  क्योंकि विभाग के हर कर्मचारी का एक हिस्सा "फिक्स" होता है.... लेकिन  लोगों ने कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की कि  आखिर ये  हिस्सा किस बात के लिए..... शायद लोग सोचना भी नहीं चाहते ......क्योंकि अगर  कुछ पैसे देने से काम हो रहा तो ठीक है..... जिन लोगों के पास पैसे हैं उनके लिए तो ठीक है... लेकिन जो आदमी गरीब हैं...वह विभाग में केवल चक्कर ही काटता रह जाता है... भ्रष्टाचार में सिर्फ कार्यालयों में लेने देने वाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है........ भ्रष्टाचार का सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं पर ही  दिखाई देता है ......इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब देश के राजनैतिक मंदिर में  सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा दिखाया गया.... 

भारत में जब भ्रष्टाचार का खुलासा होता है तो वह घोटालों के रुप में सामने आता है.... बिडंबना यह है कि ये घोटाले जानवरों के चारे और ताबूत तक के हैं... शासन व्यवस्था इस हद तक सड़ चुकी है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए इससे जुड़े लोग निम्न से निम्न स्तर तक जा सकते हैं... और ऐसे ही कार्य कर सकते हैं....भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि कोई योजना शुरू होती है...लेकिन उसके समाप्त होने से पहले उससे जुड़ा घोटाला सामने आ जाता है.....उदारण के   लिए राष्ट्रमंडल खेलों को ले लीजिए.... खेल बाद में शुरू हुए....घोटाले पहले  होगए....आदर्श  सोसाइटी घोटाला...2जी  स्पेक्ट्रम घोटाला..सुकना जमीन घोटाला... यूपी में हुआ स्वास्थय घोटाला...नरेगा के नाम पर चल रही लूट...... सबकुछ  भ्रष्टाचार की देन है....
भ्रष्टाचार से दूर रहने का दम भरने वाले गैर सरकारी संगठन यानि कि एन जी ओ भी अब इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं... सामाजिक समस्याओं को हल करना और विकास के क्षेत्रों में विकास की गति को बल देना ही एनजीओ का मुख्य उद्देश्य होता है....किसी मिशन के तहत काम करने वाले संगठन भी अब किसी और मिशन में सक्रिय हो गए हैं...बदलते हुए परिवेष को देखकर ये कहा जा सकता है कि पहले ये संगठन जंहा समाज में बदलाव का प्रयास करते थे...वहीं अब इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया है...कि  किस तरह से जोड़ तोड़ कर सामाजिक कार्यों के नाम पर पैसा ऐंठा जा सके 

वास्तव में यदि देखा जाए तो भ्रष्टाचार के विकास में हमारा भी योगदान है....अपनी सुविधा के लिए... हम रिश्वत देने में जरा  भी संकोच नहीं करते....लाइन में ना लगना पड़े इसलिए चपरासी को कुछ पैसे देकर अपना काम पहले निकाल लेते हैं....ट्रेन में एक्सट्रा पैसे देकर सीट ले लेते हैं..... सड़क पर हम खुद गलत तरीके चलते हैं लेकिन पकड़े जाने पर वही तरीका अपनाते जो ...वर्तमान समय में समाज के लिए नासूर बन चुका है.... बदलाव स्वयं से जरुरी है.... हालांकि चीजें रातो रात नहीं बदलती हैं लेकिन बदलाव के लिए एक छोटा सा कदम भी बड़ी कामयाबी है.



मंगलवार, 9 नवंबर 2010

भारत में 'माओवादी' प्रवृत्ति का उदय और उसकी वर्तमान भूमिका

अरिंदम सेन* 

इस समय,जब हम ये पंक्तियां लिख रहे हैं, माओवादी खेमे से लगातार बढ़ते अंत:पार्टी संघर्षों के संकेत मिल रहे हैं। ऎसी रिपोर्ट है कि गिरफ़्तारी के बाद माओवदी नेता कोबाड गांधी ने कहा हॆ कि वे खुद तथा कुछ दूसरे नेता पार्टी द्वारा अत्यधिक खून-खराबे के विरोधी हैं। लगभग इसी समय कोलकाता के आनंद बाज़ार पत्रिका समेत दूसरे दैनिक अखबारों ने भाकपा (माओवादी) के पोलितब्यूरो सदस्य किशनजी का विस्तृत बयान छापा है जिसमें उन्होंने बताया है कि कैसे ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री के बतौर बुद्धदेब भट्टाचार्य का स्थान ग्रहण करने के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। इसका तत्काल करारा विरोध माओवदी पार्टी के पश्चिम बंगाल राज्य-सचिव की दस्तखत से छपे एक पर्चे में किया गया। कुछ दूसरे सवाल भी राजनीतिक हल्कों में चर्चा में हैं। मसलन प.बंगाल में एक पुलिस अधिकारी के अपहरण ऒर लेन-देन के बाद उनकी रिहाई की क्या व्याख्या है? क्या यह सत्ताधारियों के साथ किसी समग्र बातचीत की संभावना की ज़मीन तैयार करने का संकेत हो सकता है? जबकि कोबाड गांधी की गिरफ़्तारी को कुछ ही समय हुआ है और एक ऎसी परिस्थिति में जबकि भूमिगत संगठनों पर राज्य ने हमले तेज़ किए हों, स्वयं पार्टी महासचिव गणपति का अचानक छोटे पर्दे पर दिखना (जिसका स्रोत पार्टी द्वारा जारी एक सी.डी.है) किस तरह का संकेत है? इन सब चीज़ों का योगफल क्या हो सकता है?
माओवाद पर टिप्पणी करने वालों ने उसे तमाम सतही तरीकों से या तो रूमानी रंग में पेश किया है, गौरवान्वित किया है या फिर उसे दैत्य बना कर प्रस्तुत किया है; ज़रूरी लेकिन यह है कि इस महत्वपूर्ण प्रवृत्ति का वैग्यानिक आकलन किया जाए ऒर उसके प्रति एक सही नज़रिया विकसित किया जाए। इस लेख में यह प्रस्तावित है कि भाकपा(माओवादी) को सबसे बेहतर एक अराजक-सैन्यवादी संगठन के बतौर समझा जा सकता है। हमारी समझ से यह आकलन तथाकथित माओवाद को न केवल उसकी वैचारिक जड़ों (अराजकतावाद) से समझता है, बल्कि साथ-साथ उसकी सबसे महत्वपूर्ण विशेषता या प्रतिफलन(सैन्यवाद) को भी सामने लाता है। यह बिलकुल साफ़ तब हो जाता है जब हम माओवाद की परिघटना को किसी अपरिवर्तनीय कोटि के बतौर नहीं, बल्कि एक वैचारिक-राजनैतिक प्रवृत्ति के बतौर समझने की कोशिश करते हैं जो कि दी हुई ऎतिहासिक अवस्था में एक खास तरीके से विकसित हुई ऒर एक खास दिशा की ओर अग्रसर है।



अराजकतावाद ऒर सर्वहारा का आदोलन: अंतर्राष्ट्रीय अनुभव

इंटरनेशनल वर्किंग मेन्स असोसियेशन के दिनों से ही अराजकतावाद-- जो कि क्रांतिकारी लक्ष्यों की प्राप्ति की ज़रूरी शर्त के बतौर लम्बी चलने वाली जन-राजनैतिक कार्रवाइयों को नकारता है या उनकी उपेक्षा करता है, बार-बार मज़दूर वर्ग के आंदोलन में विघ्न डालने वाली प्रवृत्ति के रूप में सर उठाता रहा है। इस प्रवृत्ति के पहले और सबसे प्रभावशाली प्रस्तावकों में रूस के बाकुनिन थे, जिनका मानना था कि बूर्जुआ राज्य का खात्मा मज़दूर वर्ग का तात्कालिक कार्यभार है जिसे मज़दूरों की राजनीतिक पार्टी बनाने के ज़रिए नहीं, राजनीतिक संघर्षों के ज़रिए नहीं, बल्कि 'सीधी कार्रवाई' के ज़रिए हासिल करना है। एंगेल्स ने थियोडोर कूनो को लिखे पत्र (२४ जनवरी, १८७२) मे लिखा कि अराजकतवाअदी प्रचार " सुनने में अत्यधिक रैडिकल ऒर इतना सरल प्रतीत होता है। उसे पांच मिनट में ही ह्रदयंगम किया जा सकता है; यही कारण है कि बाकुनिन का सिद्धांत इटली और स्पेन में युवा वकीलों, डाक्टरों और दूसरे सिद्धांतकारों के बीच इतनी तेज़ी से लोकप्रिय हुआ है। लेकिन मज़दूर जनता इससे प्रभावित कभी भी नहीं हो सकेगी......."



बाक्स १. " हर धड़ा अनिवार्यत: और अपनी कट्टरता के बल-बूते, खास तौर पर उन क्षेत्रों में जहां वह नया है।.......पार्टी के मुकाबले कहीं ज़्यादा तात्कालिक सफ़लता हासिल करता है जबकि पार्टी वहां वास्तविक आंदोलन का प्रतिनिधित्व करती है, बगैर संयोगवश प्राप्त चीज़ों के। लेकिन दूसरी ओर कट्टरता बहुत दिन नहीं चला करती।" ( एंगेल्स का खत बेबेल के नाम: २० जून, १८७३)


मुख्यत: मार्क्स के प्रयासों को यह श्रेय जाएगा कि बाकुनिन ऒर उनके अनुयायी लम्बे संघर्ष के बाद इंटरनेशनल से बहर किए गए। इस ऎतिहासिक पराजय के बाद, अराजकतावाद के लिए अपने शुद्ध, आदिम रूप में मज़दूर वर्ग के आंदोलन की शाखा के बतौर फिर से प्रकट होना संभव नहीं रह गया। उदाहरण के लिए रूस मे एनार्को-सिंडिकलिस्ट ने 'क्षुद्र कार्यों' को नकारा, खास तौर पर संसदीय मंच के इस्तेमाल को; उनका मानना था कि मज़दूरों को अनुशासित सर्वहारा पार्टी के बगैर ही ट्रेड यूनियनों के ज़रिए कारखानों और सत्ता पर कब्ज़ा करना चाहिए। दूसरी अति-वाम प्रवृत्तियां भी अराजकतावाद के साथ घुल-मिल कर ' निम्न -पूंजीवादी, अर्द्ध-अराजकतावादी क्रांतिकारितावाद' की अनेक रंग-बिरंगी प्रवृत्तियों को पैदा करती हैं। लेनिन ने इन प्रवृत्तियों से अपने जीवन भर चलनेवाले संघर्षों का सार 'वामपंथी कम्यूनिज़्म- एक बचकाना मर्ज़' शीर्षक प्रबंध में प्रस्तुत कर दिया है।

चीन में भी रूस की ही तरह कम्यूनिस्ट पार्टी को लगातार 'दो मोर्चों पर संघर्ष' चलाना पड़ा-- यानी 'दक्षिण' और 'वाम' दोनों तरह के अवसरवाअदों के खिलाफ़। दूसरे शब्दों में 'दक्षिणपंथी निराशावाद' और 'वामपंथी उतावलेपन' दोनों के खिलाफ़। 'पार्टी में गलत विचारों को दुरुस्त करने के बारे में' शीर्षक लेख में माओ ने ' विभिन्न गैर-सर्वहारा विचारों' के बारे में लिखा जिनमें पहला और सबसे प्रमुख विचार गैर-सर्वहारा विचार है-- ' विशुद्ध सैन्यवादी दृष्टिकोण'। माओ के शब्दों में यह दृष्टिकोण "सैन्य मामलों और राजनीति को एक दूसरे के खिलाफ़ समझता है और यह मानने से इनकार करता है कि सैन्य मामले राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने के तरीकों में महज एक तरीका है। कुछ तो यहां तक कहते हैं कि 'अगर आप सैन्य दृष्टि से अच्छे हैं तो आप राजनीतिक तौर पर भी अच्छे हैं'--यह कहना एक कदम और आगे जाकर सैन्य मामलों को राजनीति के ऊपर नेतृत्वकारी हैसियत प्रदान करने जैसा है.......इसका स्रोत शुद्धत: सैन्यवादी दृष्टिकोण है......निम्न राजनीतिक स्तर.है.....भाड़े के सैनिकों जैसी मानसिकता है.......सैन्य ताकत में अतिरिक्त विश्वास और जनता की ताकत में विश्वास की कमी है.... " (ओर मेरा)

माओ ने पराए विचारों के अंतर्गत 'आत्मगत चिंतन', 'सांगठनिक अनुशासन के प्रति अवहेलना', ' घुमंतू विद्रोहियों जैसी विचारधारा', और ''षड़्यंत्रवादी तरीके से अचानक हमले के ज़रिए क्रांति करने की मानसिकता के अवशेषों (पुचिज़्म)' को भी इस संदर्भ में लक्ष्य किया। पुचिज़्म माओ के अनुसार वह "अंधी कार्रवाई है जो आत्मगत और वस्तुगत परिस्थितियों की अवहेलना के साथ की जाती है", उन्होंने आगे जोड़ा कि ऎसी कार्रवाइयों का " सामाजिक उदगम.....लम्पट सर्वहारा ऒर निम्नपूंजीवादी विचारधारा की मिलावट में निहित है।"

इसीतरह अलग अलग समय में अलग अलग तरीके से "निम्नपूंजीवादी क्रांतिवाद, जो अराजकतावाद का पुट लिए रहता है, या उससे प्रभाव ग्रहण करता है"(लेनिन, 'वामपंथी कम्यूनिज़्म:एक बचकाना मर्ज़') दूसरी पराई प्रवृत्तियों से मिलकर "पहले से अपरिचित पोशाक और परिवेश में कुछ नए रूपों" में उभरता है। (वही) दूसरे शब्दों में अराजकतावाद का जीवाणु अलग अलग सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों और इतिहास की अवस्थाओं में खुद को परिवर्तित करके अनेक प्रकार के जटिल रूप अख्तियार करता है, लगातार नए से नए और पेचीदा उपभेदों में प्रकट होता रहता है--काफ़ी कुछ एच १एन १ या स्वाइन फ़्लू के जीवाणु की तरह जिसे पहचानना और जिससे मुक्त होना कठिन होता है।

गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

एन. एस.यू. आई. और कांग्रेस का परिवारवाद

अभी कुछ दिन पहले एक रेडियो पर एक विज्ञापन सुना..... विज्ञापन एन. एस.यू. आई. से जुड़ा  हुआ था.... जिसमे युवक कोंग्रेस के सदस्यों को और सभी युवाओं को राहुल गाँधी के नेतृत्व में चलने के लिए प्रोत्साहित  किया जा रहा था.... विज्ञापन तो असरदार था....पर... एक बात मन को झकझोरे जा रही थी......इसीलिए अपने मन में उपजे कुछ विचारों  को आप के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ .
           
            
   एन. एस.यू. आई एक ऐसा छात्र संगठन है जो वर्षों से छात्र राजनीती में नए आयाम गढ़ता आया है....... इतने  वर्षों  में एन. एस.यू. आई . ने तमाम ऐसे नेता देश को दिए है जो छात्र राजनीती का सफ़र तय करके राष्ट्रीय राजनीती में अपनी एक अलग जगह बनाई है ....पर ये बेचारे परिवारवाद की राजनीती के चलते पार्टी में केवल जी हुजूरी का काम ही  पा सके है .... स्तिथि पहले भी वही थी..... और अब भी वही है...... पार्टी में केवल नेहरु गाँधी परिवार की ही चलती है.... बाकि का काम केवल हाथ बांधे सर नीचे किये आज्ञा का पालन करना है..... अगर किसी कोंग्रेसी को मेरी इस बात से ऐतराज़ है तो वह बेधड़क मुझसे कह सकता है.... पर कहने से पहले ये जरूर सोच ले की इतने वर्षों तक राजनीतिक अनुभव लेने के बाद वह नौसिखिये राहुल के नेतृत्व  में क्यों चलाना चाहता है ? क्या एन. एस.यू. आई. इतने वर्षों में एक भी ऐसा नेता देश को दे सका जो जो आगे बढ़कर पार्टी का संचालन करे और फिर देश की बागडोर सम्हाल सके ? मै केवल एक नेता की बात कर रहा हूँ ....केवल एक नेता की..... एन. एस.यू. आई. में क्षमता बहुत है..... जोश बहुत है ...... पर फिर वही कहानी या हकीकत जिसको खुले तौर पर मानने को कोई भी कोंग्रेसी तैयार नहीं होगा.... वह है परिवारवाद ..... मै जो कह रहा हूँ... अगर वो सच नहीं है... तो फिर कुछ उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.... जो लोगों की आँखों को खोलने में सही  साबित होगा.....अर्जुन सिंह एक ऐसा नाम जिसकी भव्यता और साफगोई किसी से छुपी नहीं है.... जिनकी छवि हरदम एक साफ़ सुथरे नेता          की रही है.....छात्र राजनीती का सफ़र तय करके राष्ट्रीय राजनीती में आये पर परिवारवाद  ने उन्हें बहुत आगे जाने नहीं दिया..... यू पी ऐ    की सरकार में उन्हें मानवसंसाधन और विकास मंत्रालय का कार्य भार सौप दिया गया..... पर यू पी ए के दुसरे कार्यकाल में जब भोपाल गैस त्रासदी की बात सामने आई तो सारा दोष अर्जुन सिंह पर डाल दिया गया..... क्यों ...क्योंकि अगर अर्जुन  सिंह पर ये दोष न डाला जाता तो राजीव गाँधी की असलियत देश के सामने आ जाती..... राजीव गाँधी जी पूज्य बने रहे इसके लिए अर्जुन सिंह जी को बलि का बकरा बना दिया गया.... जो राजीव गाँधी कांग्रेस और देश में पूज्य है वही राजीव गाँधी भोपाल गैस त्रासदी के जिम्मेदार है... वही राजीव गाँधी  एंडर्सन को को भागने जिम्मेदार है..... वही रजीव गाँधी बोफोर्स घोटाले के नायक है.....हिंदुजा बंधुओ को  और इटली के बिचौलिए  क्वात्रोची को भगाने के का भी श्रेय इन्ही परम पूज्य राजीव गाँधी को जाता है....यहाँ भी कोई पार्टी कार्यकर्त्ता परिवार के विरुद्ध कुछ भी  नहीं बोल सका और न हे भविष्य में कभी बोल सकता है..... मनीष तिवारी कांग्रेस में है... छात्र राजनीती से वह भी यहाँ तक पहुचे है पर उनका काम केवल यही है की वह प्राइम टाइम में परिवार का गुडगान  करते है और राहुल बाबा की जय बोलते है..... अभिषेक मनु सिंघवी , रीता बहुगुड़ा जोशी अदि ऐसे अनेक नेता है जो इस परिवारवाद  की राजनीती का शिकार है... मै कहता हूँ की राहुल ही  क्यों है कांग्रेस से  अगले प्रधानमंत्री पद के दावेदार कोई अन्य कांग्रेसी क्यों नहीं है ..... इस छात्र संगठन को अब अपने हितों के लिए लड़ना  होगा..... अपने अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष करना होगा.... परिवाद की राजनीती को खत्म करने के लिए यह सबसे उपयुक्त समय है..... और एन. एस.यू. आई. ही  वह छात्र संगठन है जो इस तानाशाही राजनीती को खत्म  करने के लिए पहला कदम उठा सकता है.....तो कमर कस कर अपने अधिकारों को पाने के लिए तैयार हो जाइये ...और उखड फेकिये इस परिवारवाद  की ओछी राजनीती को....