वर्तमान समय में देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है..... इस सवाल पर बहुत से लोगों की अलग अलग राय हो सकती है.....पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं. इस दृष्टि यदि देखा जाये तो भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है. यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने ना चाहते हुये भी शासन-प्रणाली का और जन-जीवन का एक अनिवार्य अंग मान लिया है.और हालात ये हैं कि लोग इसे समस्या मानते ही नहीं. रिश्वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक प्राथमिक नियम बन गया है. अब लोग रिश्वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो लोग इस बात का विरोध करतें हैं, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी मान लेते हैं. ऐसा लगता है कि समाज से धीरे धीरे नैतिकता और आदर्श का बोध समाप्त होता जा रहा है.... सबसे अधिक संकट की बात यह है कि भ्रष्टाचार ना तो आम लोगों की चर्चा का विषय और ना ही किसी राजनैतिक दल का प्रमुख मुद्दा है.... दुख की बात तो यह है कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनेता और कोरोबारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की बात कर रहें हैं.....देश की इस हालत के लिए ये भ्रष्टाचारी राजनेता जिम्मेदार हैं.... असल में ये राजनेता भ्रष्टाचार का पर्यायवाची बन चुके है.... भ्रष्टाचार रूपी घुन देश को किस तरह से बर्बाद कर रहा है...उसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे ये राजनेता ही हैं..... पूरा देश जानता है कि इन राजनेताओं को कितना वेतन भत्ता और तमाम तरह की सुविधाएं...मिलती हैं..लेकिन एक बार जनता के द्वारा चुने जाने के बाद किस तरह से इनके महल खड़े होने लगते हैं....करोड़ों की संपत्ति..... लग्जरी कार और दुनिया भर की सरकारी सहूलियतें.... लेकिन जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है, उससे वह पूछ भी नहीं सकते कि उनके पास इतना धन आया कहाँ से......सब चलता है कि तरह अब लोगों ने इस अपनी नियती मान लिया है......अपने टैक्स का दूरूपयोग होता देख कर भी लोग इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते....बल्कि इसे कन्नी काट कर निकल जाना ही बेहतर समझते हैं....लोग यह भी नहीं समझते कि उनके द्वारा दिया हुआ पैसा देश के विकास के लिए है ना कि इन राजनेताओं के बैंक बैलेंस को भारी करने के लिए....
ये भ्रष्टाचार केवल नेताओओं तक ही ही सीमित नहीं है.... एक तरह ये नेता जहां करोड़ों की हेरा फेरी करते हैं वहीं ..... दूसरी तरफ सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार एक (अ)वैधानिक प्रक्रिया का अंग बन चुका है.... सरकारी विभाग में बैठे कर्मचारी बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते.... राशन कार्ड बनवाने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक.... हर काम के लिए रिश्वत..आपका फाइल आगे बढ़ती रहे इसलिए सरकारी विभाग के हर देवता को चढ़ावा देने पड़ता है..... जमीन की रजिस्ट्री करवानी हो या आय प्रमाम पत्र बनवाना हो बिना रिश्वत दिए आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं... और ये रिश्वत इस लिए क्योंकि विभाग के हर कर्मचारी का एक हिस्सा "फिक्स" होता है.... लेकिन लोगों ने कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की कि आखिर ये हिस्सा किस बात के लिए..... शायद लोग सोचना भी नहीं चाहते ......क्योंकि अगर कुछ पैसे देने से काम हो रहा तो ठीक है..... जिन लोगों के पास पैसे हैं उनके लिए तो ठीक है... लेकिन जो आदमी गरीब हैं...वह विभाग में केवल चक्कर ही काटता रह जाता है... भ्रष्टाचार में सिर्फ कार्यालयों में लेने देने वाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है........ भ्रष्टाचार का सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं पर ही दिखाई देता है ......इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब देश के राजनैतिक मंदिर में सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा दिखाया गया....
भारत में जब भ्रष्टाचार का खुलासा होता है तो वह घोटालों के रुप में सामने आता है.... बिडंबना यह है कि ये घोटाले जानवरों के चारे और ताबूत तक के हैं... शासन व्यवस्था इस हद तक सड़ चुकी है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए इससे जुड़े लोग निम्न से निम्न स्तर तक जा सकते हैं... और ऐसे ही कार्य कर सकते हैं....भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि कोई योजना शुरू होती है...लेकिन उसके समाप्त होने से पहले उससे जुड़ा घोटाला सामने आ जाता है.....उदारण के लिए राष्ट्रमंडल खेलों को ले लीजिए.... खेल बाद में शुरू हुए....घोटाले पहले होगए....आदर्श सोसाइटी घोटाला...2जी स्पेक्ट्रम घोटाला..सुकना जमीन घोटाला... यूपी में हुआ स्वास्थय घोटाला...नरेगा के नाम पर चल रही लूट...... सबकुछ भ्रष्टाचार की देन है....
भ्रष्टाचार से दूर रहने का दम भरने वाले गैर सरकारी संगठन यानि कि एन जी ओ भी अब इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं... सामाजिक समस्याओं को हल करना और विकास के क्षेत्रों में विकास की गति को बल देना ही एनजीओ का मुख्य उद्देश्य होता है....किसी मिशन के तहत काम करने वाले संगठन भी अब किसी और मिशन में सक्रिय हो गए हैं...बदलते हुए परिवेष को देखकर ये कहा जा सकता है कि पहले ये संगठन जंहा समाज में बदलाव का प्रयास करते थे...वहीं अब इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया है...कि किस तरह से जोड़ तोड़ कर सामाजिक कार्यों के नाम पर पैसा ऐंठा जा सके
वास्तव में यदि देखा जाए तो भ्रष्टाचार के विकास में हमारा भी योगदान है....अपनी सुविधा के लिए... हम रिश्वत देने में जरा भी संकोच नहीं करते....लाइन में ना लगना पड़े इसलिए चपरासी को कुछ पैसे देकर अपना काम पहले निकाल लेते हैं....ट्रेन में एक्सट्रा पैसे देकर सीट ले लेते हैं..... सड़क पर हम खुद गलत तरीके चलते हैं लेकिन पकड़े जाने पर वही तरीका अपनाते जो ...वर्तमान समय में समाज के लिए नासूर बन चुका है.... बदलाव स्वयं से जरुरी है.... हालांकि चीजें रातो रात नहीं बदलती हैं लेकिन बदलाव के लिए एक छोटा सा कदम भी बड़ी कामयाबी है.
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