मेरे द्वारा लिखी हुई ये कविता किसी साहित्यिक योगदान के लिए नहीं है , अपितु केवल एक भावना पैदा करती है उस व्यक्ति में जो तमाम तरह की बुराइयों में फंस कर अपने मूल लक्ष्य से भटक गया हो और एक आवाज़ चाहता हो जो उसे नींद से जगा दे ...........
'ये कविता एक आवाज़ है' .............
'ये कविता एक आवाज़ है' .............
यायावर था मै कभी ,
ठहर गया हूँ अभी अभी
जैसे बाँध के सामने रुक जाती है कोई नदी ,
कुछ क्लेश था मन में बचा अभी
क्यों बंध सीमा में गया अभी
सत्यान्वेषण की राह में बाधाएं आती है कितनी
यह ज्ञात हुआ है मुझे अभी
मुझको दिखता है सत्यांश उस बंधन के कोने से कही
मुझमे दृढ़ता मुझमे भुजबल मुझ में नवयौवन का प्रवाह ,
मै भरा हुआ उत्साह से था उस बंधन ने जाना न अभी
यह बंधन कुटिल बेड़ियों का लालच की जिसमे गाँठ पड़ी
जब मैंने वहां प्रहार किया बंधन टूटे गांठे जा उडी
फिर चल पड़ा मै उधर
जिसको लक्ष्य बनाया था कभी
तोड़ के साड़ी सीमओं को निकल पड़ा हूँ अभी अभी
यायावर हूँ मै अभी .....................
यायावर हूँ मै अभी ...............................