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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

एक नज़र : कुछ बड़े घोटालो पर


आइये एक नज़र डालते हैं आज़ादी के बाद  अब तक हुए कुछ बड़े घोटालो पर

जीप खरीद घोटाला (१९४८)
आजादी के बाद भारत सरकार ने एक लंदन की कंपनी से 2000 जीपों को सौदा किया। सौदा 80 लाख रुपये का था.... लेकिन केवल 155 जीप ही मिली घोटाले में ब्रिटेन में मौजूद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के.कृष्ण मेनन का हाथ होने की बात सामने आई.... 1955 में केस बंद कर दिया गया.. क्योंकि जल्द ही मेनन नेहरु केबिनेट में शामिल हो गए।

साइकिल इंपोर्ट (1951): तत्कालीन वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के सेकरेटरी एस.ए. वेंकटरमन ने एक कंपनी को साइकिल आयात कोटा दिए जाने के बदले में रिश्वत ली। इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा।

मुंध्रा मैस (१९५८) : हरिदास मुंध्रा द्वारा स्थापित छह कंपनियों में लाइफ इंश्योरेंस कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के 1.2 करोड़ रुपये से संबंधित मामला उजागर हुआ। इसमें तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी, वित्त सचिव एच.एम.पटेल, एलआईसी चेयरमैन एल एस वैद्ययानाथन का नाम आया। कृष्णामचारी को इस्तीफा देना पड़ा और मुंध्रा को जेल जाना पड़ा।

तेजा लोन : १९६० में एक बिजनेसमैन धर्म तेजा ने एक शिपिंग कंपनी शुरू करने केलिए सरकार से २२ करोड़ रुपये का लोन लिया। लेकिन बाद में धनराशि को देश से बाहर भेज दिया। उन्हें यूरोप में गिरफ्तार किया गया और छह साल की कैद हुई।

पटनायक मामला : १९६५ में उड़ीसा के मुख्यमंत्री बीजू पटनायक को इस्तीफा देने केलिए मजबूर किया गया। उन पर अपनी निजी स्वामित्व कंपनी 'कलिंग ट्यूब्सÓ को एक सरकारी कांट्रेक्ट दिलाने केलिए मदद करने का आरोप था।

मारुति घोटाला : मारुति कंपनी बनने से पहले यहां एक घोटाला हुआ जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का नाम आया। मामले में पेसेंजर कार बनाने का लाइसेंस देने के लिए संजय गांधी की मदद की गई थी।

कुओ(्यह्वश) ऑयल डील : १९७६ में तेल के गिरते दामों के मददेनजर इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने हांग कांग की एक फर्जी कंपनी से ऑयल डील की। इसमें भारत सरकार को १३ करोड़ का चूना लगा। माना गया इस घपले में इंदिरा और संजय गांधी का भी हाथ है।

अंतुले ट्रस्ट : १९८१ में महाराष्ट्र में सीमेंट घोटाला हुआ। तत्कालीन महाराष्ट्र मुख्यमंत्री एआर अंतुले पर आरोप लगा कि वह लोगों के कल्याण के लिए प्रयोग किए जाने वाला सीमेंट, प्राइवेट बिल्डर्स को दे रहे हैं।

एचडीडब्लू कमिशन्स (१९८७) : जर्मनी की पनडुब्बी निर्मित करने वाले कंपनी एचडीडब्लू को काली सूची में डाल दिया गया। मामला था कि उसने २० करोड़ रुपये बैतोर कमिशन दिए हैं। २००५ में केस बंद कर दिया गया। फैसला एचडीडब्लू के पक्ष में रहा।

बोफोर्स घोटाला : १९८७ में एक स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी से रिश्वत लेने के मामले में राजीव गांधी समेत कई बेड़ नेता फंसे। मामला था कि भारतीय 155 मिमी. के फील्ड हॉवीत्जर के बोली में नेताओं ने करीब ६४ करोड़ रुपये का घपला किया है।

सिक्योरिटी स्कैम : १९९२ में हर्षद मेहता ने धोखाधाड़ी से बैंको का पैसा स्टॉक मार्केट में निवेश कर दिया, जिससे स्टॉक मार्केट को करीब 5000 करोड़ रुपये का घाटा हुआ।

इंडियन बैंक : १९९२ में बैंक से छोटे कॉरपोरेट और एक्सपोटर्स ने बैंक से करीब १३००० करोड़ रुपये उधार लिए। ये धनराशि उन्होंने कभी नहीं लौटाई। उस वक्त बैंक के चेयरमैन एम. गोपालाकृष्णन थे।

चारा घोटाला : १९९६ में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव और अन्य नेताओं ने राज्य के पशु पालन विभाग को लेकर धोखाबाजी से लिए गए ९५० करोड़ रुपये कथित रूप से निगल लिए।

दूरसंचार घोटाला-१२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - १९९६
सजा - एक को, वह भी उच्च न्यायालय में अपील के कारण लंबित
वसूली - ५.३६ करोड़ रुपए
(तत्कालीन दूरसंचार मंत्री सुखराम द्वारा किए गए इस घोटाले में छापे के दौरान उनके पास से ५.३६ करोड़ रुपए नगद मिले थे, जो जब्त हैं। पर गाजियाबाद में घर (१.२ करोड़ रु.), आभूषण (लगभग १० करोड़ रुपए) बैंकों में जमा (५ लाख रु.) शिमला और मण्डी में घर सहित सब कुछ वैसा का वैसा ही रहा। सूत्रों के अनुसार सुखराम के पास उनके ज्ञात स्रोतों से ६०० गुना अधिक सम्पत्ति मिली थी।)

यूरिया घोटाला- १३३ करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २६ मई, १९९६
सजा - अब तक किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(प्रधानमंत्री नरसिंहराव के करीबी नेशनल फर्टीलाइजर के प्रबंध निदेशक सी.एस.रामाकृष्णन ने यूरिया आयात के लिए पैसे दिए, जो कभी नहीं आया।)
सी.आर.बी- १०३० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २० मई, १९९७
सजा - किसी को नहीं
वसूली - शून्य
(चैन रूप भंसाली (सीआरबी) ने १ लाख निवेशकों का लगभग १ हजार ३० करोड़ रु. डुबाया और अब वह न्यायालय में अपील कर स्वयं अपनी पुर्नस्थापना के लिए सरकार से ही पैकेज मांग रहा है।)
केपी- ३२०० करोड़ रुपए
मामला दर्ज हुआ - २००१ में ३ मामले
सजा - अब तक नहीं
वसूली - शून्य

तहलका : इस ऑनलाइन न्यूज पॉर्टल ने स्टिंग ऑपरेशन के जारिए ऑर्मी ऑफिसर और राजनेताओं को रिश्वत लेते हुए पकड़ा। यह बात सामने आई कि सरकार द्वारा की गई १५ डिफेंस डील में काफी घपलेबाजी हुई है और इजराइल से की जाने वाली बारक मिसाइल डील भी इसमें से एक है।

स्टॉक मार्केट : स्टॉक ब्रोकर केतन पारीख ने स्टॉक मार्केट में १,१५,००० करोड़ रुपये का घोटाला किया। दिसंबर, २००२ में इन्हें गिरफ्तार किया गया।

स्टांप पेपर स्कैम : यह करोड़ो रुपये के फर्जी स्टांप पेपर का घोटाला था। इस रैकट को चलाने वाला मास्टरमाइंड अब्दुल करीम तेलगी था।

सत्यम घोटाला
२००८ में देश की चौथी बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर्स के संस्थापक अध्यक्ष रामलिंगा राजू द्वारा ८००० करोड़ रूपये का घोटाले का मामला सामने आया। राजू ने माना कि पिछले सात वर्षों से उसने कंपनी के खातों में हेरा फेरी की।

मनी लांडरिंग : २००९ में मधु कोड़ा को चार हजार करोड़ रुपये की मनी लांडरिंग का दोषी पाया गया। मधु कोड़ा की इस संपत्ति में हॉटल्स, तीन कंपनियां, कलकत्ता में प्रॉपर्टी, थाइलैंड में एक हॉटल और लाइबेरिया ने कोयले की खान शामिल थी।
2010--- 2जी स्पेक्ट्रम घोटाला--  दूरसंचार मंत्री ए. राजा ने चुनिंदा टेलीकाम कंपनियों को फायदा पहुचाने के लिए सस्ते दाम पर
स्पेक्ट्रम को बेच दिया... मामला ज्यादा बढ़ जाने पर इस्तीफा दिया..और बाद में जेल गए

CAVS रंगमंच: भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान 

CAVS रंगमंच: भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान

भ्रष्टाचार में हमारा भी योगदान 



वर्तमान समय में  देश की सबसे बड़ी समस्या क्या है.....  इस  सवाल पर बहुत से  लोगों की अलग अलग राय हो सकती है.....पर मेरे विचार से सबसे बड़ी समस्या वह होती है, जिसे लोग समस्या मानना बन्द कर देते हैं और जीवन का एक हिस्सा मान लेते हैं. इस दृष्टि यदि  देखा जाये तो भ्रष्टाचार देश की सबसे बड़ी समस्या है. यह एक ऐसी समस्या है, जिसे हमने ना चाहते हुये भी शासन-प्रणाली का और जन-जीवन का एक अनिवार्य अंग मान लिया है.और  हालात ये हैं कि लोग इसे समस्या मानते ही नहीं. रिश्वत लेना-देना अब नौकरशाही के अनेक नियमों में से एक प्राथमिक  नियम बन  गया है. अब लोग रिश्वत लेने-देने को बुरा नहीं समझते बल्कि जो  लोग इस बात का विरोध करतें हैं, उसे बेवकूफ़ और अति आदर्शवादी मान लेते हैं.  ऐसा लगता है कि  समाज से धीरे  धीरे  नैतिकता और आदर्श का बोध समाप्त होता जा रहा है.... सबसे अधिक संकट की बात यह  है कि भ्रष्टाचार ना तो आम लोगों की चर्चा का विषय और ना ही किसी राजनैतिक दल का प्रमुख मुद्दा है.... दुख की बात तो यह है कि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे राजनेता और कोरोबारी भ्रष्टाचार  के खिलाफ आंदोलन की बात कर रहें हैं.....देश की इस हालत के लिए ये भ्रष्टाचारी राजनेता जिम्मेदार हैं.... असल में ये राजनेता भ्रष्टाचार का पर्यायवाची  बन चुके है.... भ्रष्टाचार रूपी घुन देश को किस तरह से बर्बाद कर रहा है...उसका सबसे बड़ा उदाहरण हमारे ये राजनेता ही हैं..... पूरा देश जानता है कि इन राजनेताओं को कितना वेतन भत्ता और तमाम तरह की सुविधाएं...मिलती हैं..लेकिन एक बार जनता के द्वारा चुने जाने के बाद  किस तरह से इनके महल खड़े होने लगते हैं....करोड़ों की संपत्ति..... लग्जरी कार और दुनिया भर की सरकारी सहूलियतें.... लेकिन जिस जनता ने उनको चुनकर संसद या विधानसभा तक पहुँचाया है,  उससे वह पूछ भी  नहीं सकते कि  उनके पास इतना धन आया कहाँ से......सब चलता है कि तरह अब लोगों ने इस अपनी नियती मान लिया है......अपने टैक्स का दूरूपयोग होता देख कर भी लोग इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देते....बल्कि इसे कन्नी काट कर निकल जाना ही बेहतर समझते हैं....लोग यह भी नहीं समझते कि उनके द्वारा दिया हुआ पैसा देश के विकास के लिए है ना कि इन राजनेताओं के बैंक बैलेंस को भारी करने के लिए....

 ये भ्रष्टाचार केवल नेताओओं तक ही ही सीमित नहीं है.... एक तरह ये नेता जहां करोड़ों  की हेरा फेरी करते हैं वहीं ..... दूसरी तरफ सरकारी अमलों में भ्रष्टाचार एक (अ)वैधानिक प्रक्रिया का अंग बन चुका है.... सरकारी विभाग में बैठे कर्मचारी बिना रिश्वत लिए कोई काम नहीं करते.... राशन कार्ड बनवाने से लेकर पासपोर्ट बनवाने तक.... हर काम के लिए रिश्वत..आपका फाइल आगे बढ़ती रहे इसलिए सरकारी विभाग के हर देवता को चढ़ावा देने पड़ता है..... जमीन की रजिस्ट्री करवानी हो या आय प्रमाम पत्र  बनवाना हो बिना रिश्वत दिए आप एक कदम भी आगे नहीं बढ़ सकते हैं... और ये रिश्वत इस लिए  क्योंकि विभाग के हर कर्मचारी का एक हिस्सा "फिक्स" होता है.... लेकिन  लोगों ने कभी ये जानने की कोशिश भी नहीं की कि  आखिर ये  हिस्सा किस बात के लिए..... शायद लोग सोचना भी नहीं चाहते ......क्योंकि अगर  कुछ पैसे देने से काम हो रहा तो ठीक है..... जिन लोगों के पास पैसे हैं उनके लिए तो ठीक है... लेकिन जो आदमी गरीब हैं...वह विभाग में केवल चक्कर ही काटता रह जाता है... भ्रष्टाचार में सिर्फ कार्यालयों में लेने देने वाले घूस को ही शामिल नहीं किया जा सकता बल्कि इसके अंदर वह सारा आचरण शामिल होता है जो एक सभ्य समाज के सिर को नीचा करने में मजबूर कर देता है........ भ्रष्टाचार का सर्वाधिक प्रभाव राजनेताओं पर ही  दिखाई देता है ......इसका प्रत्यक्ष प्रमाण तो तब देखने को मिला जब देश के राजनैतिक मंदिर में  सांसदों के द्वारा संसद भवन में प्रश्न तक पूछने के लिए पैसे लेने का प्रमाण कुछ टीवी चैनलों द्वारा दिखाया गया.... 

भारत में जब भ्रष्टाचार का खुलासा होता है तो वह घोटालों के रुप में सामने आता है.... बिडंबना यह है कि ये घोटाले जानवरों के चारे और ताबूत तक के हैं... शासन व्यवस्था इस हद तक सड़ चुकी है कि अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए इससे जुड़े लोग निम्न से निम्न स्तर तक जा सकते हैं... और ऐसे ही कार्य कर सकते हैं....भ्रष्टाचार इस कदर हावी हो चुका है कि कोई योजना शुरू होती है...लेकिन उसके समाप्त होने से पहले उससे जुड़ा घोटाला सामने आ जाता है.....उदारण के   लिए राष्ट्रमंडल खेलों को ले लीजिए.... खेल बाद में शुरू हुए....घोटाले पहले  होगए....आदर्श  सोसाइटी घोटाला...2जी  स्पेक्ट्रम घोटाला..सुकना जमीन घोटाला... यूपी में हुआ स्वास्थय घोटाला...नरेगा के नाम पर चल रही लूट...... सबकुछ  भ्रष्टाचार की देन है....
भ्रष्टाचार से दूर रहने का दम भरने वाले गैर सरकारी संगठन यानि कि एन जी ओ भी अब इस बीमारी की चपेट में आ गए हैं... सामाजिक समस्याओं को हल करना और विकास के क्षेत्रों में विकास की गति को बल देना ही एनजीओ का मुख्य उद्देश्य होता है....किसी मिशन के तहत काम करने वाले संगठन भी अब किसी और मिशन में सक्रिय हो गए हैं...बदलते हुए परिवेष को देखकर ये कहा जा सकता है कि पहले ये संगठन जंहा समाज में बदलाव का प्रयास करते थे...वहीं अब इनका एकमात्र उद्देश्य रह गया है...कि  किस तरह से जोड़ तोड़ कर सामाजिक कार्यों के नाम पर पैसा ऐंठा जा सके 

वास्तव में यदि देखा जाए तो भ्रष्टाचार के विकास में हमारा भी योगदान है....अपनी सुविधा के लिए... हम रिश्वत देने में जरा  भी संकोच नहीं करते....लाइन में ना लगना पड़े इसलिए चपरासी को कुछ पैसे देकर अपना काम पहले निकाल लेते हैं....ट्रेन में एक्सट्रा पैसे देकर सीट ले लेते हैं..... सड़क पर हम खुद गलत तरीके चलते हैं लेकिन पकड़े जाने पर वही तरीका अपनाते जो ...वर्तमान समय में समाज के लिए नासूर बन चुका है.... बदलाव स्वयं से जरुरी है.... हालांकि चीजें रातो रात नहीं बदलती हैं लेकिन बदलाव के लिए एक छोटा सा कदम भी बड़ी कामयाबी है.