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शुक्रवार, 25 जून 2010

यायावर....................

मेरे द्वारा लिखी हुई ये कविता किसी साहित्यिक योगदान के लिए नहीं है , अपितु केवल एक भावना पैदा करती है उस व्यक्ति में जो तमाम तरह की बुराइयों में फंस कर अपने मूल लक्ष्य से भटक गया हो और एक आवाज़ चाहता हो जो उसे नींद से जगा दे ...........

'ये कविता एक आवाज़ है' .............








यायावर था मै कभी ,

ठहर गया हूँ अभी अभी

जैसे बाँध के सामने रुक जाती है कोई नदी ,

कुछ क्लेश था मन में बचा अभी

क्यों बंध सीमा में गया अभी

सत्यान्वेषण की राह में बाधाएं आती है कितनी

यह ज्ञात हुआ है मुझे अभी

मुझको दिखता है सत्यांश उस बंधन के कोने से कही

मुझमे दृढ़ता मुझमे भुजबल मुझ में नवयौवन का प्रवाह ,

मै भरा हुआ उत्साह से था उस बंधन ने जाना न अभी

यह बंधन कुटिल बेड़ियों का लालच की जिसमे गाँठ पड़ी

जब मैंने वहां प्रहार किया बंधन टूटे गांठे जा उडी

फिर चल पड़ा मै उधर

जिसको लक्ष्य बनाया था कभी

तोड़ के साड़ी सीमओं को निकल पड़ा हूँ अभी अभी

यायावर हूँ मै अभी .....................

यायावर हूँ मै अभी ...............................


2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ बहुत सुन्दर ढंग से पिरोया है -बधाई

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  2. KOI BHI INSAAN KOI KAM TB KARTA HAI JB YA TO WO ESA KSRNA CHAHTA YA PHIR CHAH KAR BHI NAHI KAR PAYA HO?
    TUMNE YE POEM LIKHI UN LOGO K LIYE JO APNE TARGET S BHATAK JATE HAI OR EK AWAZ CHAHTE H,WAPAS NIKLNE K LIYE!
    TUMHARE SATH TO ESA KUCH NAHI HAI NAAAAAA?
    I HOPE KBHI NA HO K TUM APNE TARGET SE KAHI BHI BHATKO OR TUMHE KISI AWAZ KI JRURAT PADE
    MY WISHES WITH YOU
    GO AHEAD,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

    जवाब देंहटाएं